इतिहास अध्याय -1 भारत में यूरोपीय आगमन / Class 8 Social Science / History Notes Chapter 1 Arrival of Europeans in India
भारत के सामुद्रिक रास्तों की खोज 15वीं सदी के अन्त में हुई जिसके बाद यूरोपीयों का भारत आना प्रारंभ/ Start coming to India हुआ। यद्यपि यूरोपीय लोग European People भारत के अलावा भी बहुत जगहों पर अपने उपनिवेश बनाने में सफल हुए पर इनमें से कइयों का मुख्य आकर्षण भारत ही था। सत्रहवीं शताब्दी / seventeenth century के अंत तक यूरोपीय कई एशियाई स्थानों पर अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके थे और अठारहवीं सदी के उत्तरार्ध में वे कई जगहों पर अधिकार भी कर लिए थे। लेकिन उन्नासवीं सदी में जाकर ही अंग्रेजों का भारत पर एकाधिकार हो पाया था।
भारत की समृद्धि को देखकर पश्चिमी देशों / western countries में भारत के साथ व्यापार करने का मन पहले से ही था। यूरोपीय नाविकों द्वारा सामुद्रिक मार्गों का पता लगाना इन्हीं लालचो का परिणाम था। तेरहवीं सदी के आसपास मुसलमानों का अधिपत्य भूमध्य सागर और उसके पूरब के क्षेत्रों पर हो गया था और इस कारण यूरोपी देशों को भारतीय माल की आपूर्ति ठप्प पड़ गई। उस पर भी इटली के वेनिस नगर में चुंगी देना उनको रास नहीं आता था। कोलंबस भारत का पता लगाने अमरीका पहुँच गया और सन् 1487-88 में पेडरा द कोविल्हम नाम का एक पुर्तगाली नाविक पहली बार भारत के तट/ Coast of India पर मालाबार पहुँचा। भारत पहुचने वालों में पुर्तगाली सबसे पहले थे इसके बाद डच आए और डचों ने पुर्तगालियों से कई लड़ाईयाँ लड़ीं। भारत के अलावा श्रीलंका में भी डचों ने पुर्तगालियों को खडेड़ दिया। पर डचों का मुख्य आकर्षण भारत न होकर दक्षिण पूर्व एशिया के देश थे। अतः उन्हें अंग्रेजों ने पराजित किया जो मुख्यतः भारत से अधिकार करना चाहते थे। आरंभ में तो इन यूरोपीय देशों का मुख्य काम व्यापार ही था पर भारत की राजनैतिक स्थिति को देखकर उन्होंने यहाँ साम्राज्यवादी और औपनिवेशिक नीतियाँ अपनानी शुरू की।
पुर्तगाली / Portuguese
17 मई 1498 को पुर्तगाल का वास्को-डी-गामा भारत के तट पर आया जिसके बाद भारत आने का रास्ता तय हुआ। वास्को डी गामा की सहायता गुजराती व्यापारी अब्दुल मजीद ने की । उसने कालीकट के राजा जिसकी उपाधि ‘जमोरिन’थी से व्यापार का अधिकार प्राप्त कर लिया पर वहाँ सालों से स्थापित / established over the years अरबी व्यापारियों ने उसका विरोध किया। 1499 में वास्को-डी-गामा स्वदेश लौट गया और उसके वापस पहुँचने के बाद ही लोगों को भारत के सामुद्रिक मार्ग की जानकारी मिली।
सन् 1500 में पुर्तगालियों ने कोचीन(केरल) के पास अपनी कोठी बनाई। शासक सामुरी (जमोरिन) से उसने कोठी की सुरक्षा का भी इंतजाम करवा लिया क्योंकि अरब व्यापारी / arab merchant उसके ख़िलाफ़ थे। इसके बाद कालीकट और कन्ननोर में भी पुर्तगालियों ने कोठियाँ बनाई। उस समय तक पुर्तगाली भारत में अकेली यूरोपी व्यापारिक शक्ति थी। उन्हें बस अरबों के विरोध का सामना करना पड़ता था। सन् 1510 में पुर्तगालियों ने गोवा पर अपना अधिकार कर लिया तथा उसे अपना प्रशासनिक केंद्र बनाया । ये घटना जमोरिन को पसन्द नहीं आई और वो पुर्तगालियों के खिलाफ हो गया। पुर्तगालियों के भारतीय क्षेत्र का पहला वायसऱय था डी-अल्मोड़ा। उसके बाद [अल्फांसो डी अल्बूकर्क ] पुर्तगालियों का वॉयसराय नियुक्त हुआ। उसने 1510 में कालीकट के शासक जमोरिन का महल लूट लिया।
पुर्तगाली इसके बाद व्यापारी से ज्यादा साम्राज्यवादी नज़र आने लगे। वे पूरब के तट पर अपनी स्थिति सुदृढ़ करना चाहते थे। अल्बूकर्क के मरने के बाद पुर्तगाली और क्षेत्रों पर अधिकार करते गए। सन् 1571 में बीजापुर, अहमदनगर और कालीकट के शासकों ने मिलकर पुर्तगालियों को निकालने की चेष्टा की पर वे सफल नहीं हुए। 1579 में वे मद्रास के निकच थोमें, बंगाल में हुगली और चटगाँव में अधिकार करने मे सफल रहे। 1580 में मुगल बादशाह अकबर के दरबार में पुर्तगालियों ने पहला ईसाई मिशन भेजा। वे अकबर को ईसाई धर्म में दीक्षित करना चाहते थे पर कई बार अपने नुमाइन्दों को भेजने के बाद भी वो सफल नहीं रहे। पर पुर्तगाली भारत के विशाल क्षेत्रों पर अधिकार नहीं कर पाए थे। उधर स्पेन के साथ पुर्तगाल का युद्ध और पुर्तगालियों द्वारा ईसाई धर्म के अन्धाधुन्ध और कट्टर प्रचार के कारण वे स्थानीय शासकों के शत्रु बन गए और 1612 में कुछ मुगल जहाज को लूटने के बाद उन्हें भारतीय प्रदेशों से हाथ धोना पड़ा।
हुगली पर अधिकार / Right on Hooghly
पुर्तगालियों ने हुगली पर अधिकार, वहां से गुजरने वाले जहाजों को लूटने के मकसद से किया था, 24 जून 1632 से लेकर 24 सितंबर 1632 तक लगातार तीन महीने तक कासिम खान (मुगल सेनापति) ने 1,50,000 की सेना लेकर पुर्तगालियों पर हमला कर दिया, 300 पुर्तगाली और 600 निवासी ईसाई सैनिक लड़ते रहे/ soldiers kept fighting, जिसके बाद वे भाग खड़े हुए, उनके अधिकतर जहाज को गए, लेकिन कुछ किसी प्रकार सागर द्वीप तक पहुंचने में कामयाब हो गए, लेकिन वहां व्याप्त महामारी से अधिकतर जिंदा लोग मर गए। मुग़लों के 1000 लोग मारे गए, लेकिन उन्होंने 400 पुर्तगालियों को बंधक भी बना लिया, जिन्हें आगरा लाया गया। बंदियों को इस्लाम धर्म अपनाने या दासता स्वीकार करने का विकल्प दिया गया।
डच /Dutch
पुर्तगालियों की समृद्धि देख कर डच भी भारत और श्रीलंका की ओर आकर्षित हुए। सर्वप्रथम 1598 में डचों का प्रथम जहाज अफ्रीका और जावा के रास्ते भारत पहुँचा। 1602 में प्रथम डच ईस्ट कम्पनी की स्थापना की गई जो भारत से व्यापार करने के लिए बनाई गई थी। इस टाइम तक अंग्रेज और फ्रांसिसी लोग भी भारत में पहुँच चुके थे पर नाविक दृष्टि से डच इनसे वरीय थे। डचो ने मसाले के स्थान पर भारतीय कपड़ों के निर्यात की अधिक महत्व दिया। सन् 1602 में डचों ने अम्बोयना पर पुर्तगालियों को हरा कर अधिकार कर लिया। इसके बाद 1612 में श्रीलंका में भी डचों ने पुर्तगालियों को खदेड़ दिया। उन्होंने मसुलिपटृम (1605),पुलीकट (1610), सूरत (1616), बिमिलिपटृम (1641), करिकल (1653),चिनसुरा (1653), क़ासिम बाज़ार, बड़ानगर, पटना, बालेश्वर (उड़ीसा) (1658), नागापट्टनम् (1658) और कोचीन (1663) में अपनी कोठियाँ स्थापित कर लीं। लेकिन , एक तो डचों का मुख्य उद्येश्य भारत से व्यापार न करके पूर्वी एशिया के देशों में अपने व्यापार के लिए कड़ी के रूप में स्थापित करना था और दूसरे अंग्रेजों ओर फ्रांसिसियों ने उन्हें यहाँ और यूरोप दोनों जगह युद्धों में हरा दिया। इस कारण डचों का प्रभुत्व बहुत दिनों तक भारत में नहीं रह पाया था
अंग्रेज और फ्रान्सीसी / English and french
इंग्लैँड के नाविको को भारत का पता कोई 1578 इस्वी तक नहीं लग पाया था। 1578 में सर फ्रांसिस ड्रेक नामक एक अंग्रेज़ नाविक ने लिस्बन जाने वाले एक जहाज को लूट लिया। इस जहाज़ से उसे भारत जाने वाले रास्ते का मानचित्र मिला। 31 दिसम्बर सन् 1600 को कुछ व्यापारियों ने इंग्लैँड की महारानी एलिज़ाबेथ को ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना का अधिकार पत्र दिया। उन्हें पूरब के देशों के साथ व्यापार की अनुमति मिल गई। 1601-03 के समय कम्पनी ने सुमात्रा में वेण्टम नामक स्थान पर अपनी एक कोठी खोली। विलियम हॉकिन्स नाम का एक अंग्रेज़ नाविक हेक्टेर नामक जहाज द्वारा सूरत पहुँचा। वहाँ आकर वो आगरा गया और जहाँगीर के दरबार में अपनी एक कोठी खोलने की विनती की। जहाँगीर के दरबार में पुर्तगालियों की धाक पहले से थी। उस समय तक मुगलों से पुर्तगालियों की कोई लड़ाई नहीं हुई थी और पुर्तगालियों की मुगलों से मित्रता बनी हुई थी। विलियम हॉकिन्स को वापस लौट जाना पड़ा। पुर्तगालियों को अंग्रेजों ने 1611 में जावली की लड़ाई ( सूरत ) में हरा दिया और सर थॉमस रो को इंग्लैंड के शासक जेम्स प्रथम ने अपना राजदूत बनाकर जहाँगीर के दरबार में भेजा। वहाँ उसे सूरत में अंग्रेज कोठी खोलने की इज़ाज़त मिली।
इसके बाद बालासोर (बालेश्वर), हरिहरपुर, मद्रास (1633), हुगली (1651) और बंबई (1688) में अंग्रेज कोठियाँ स्थापित की गईं। पर अंग्रेजों की बढ़ती उपस्थिति और उनके द्वारा अपने सिक्के चलाने से मुगल गुस्सा हुए। उन्हें हुगली, कासिम बाज़ार, पटना, मछली पट्टनम्, विशाखा पत्तनम और बम्बई से निकाल दिया गया। 1690 में अंग्रेजों ने मुगल बादशाह औरंगजेब से क्षमा याचना की और अर्थदण्ड का भुगतानकर नई कोठियाँ खोलने और किलेबंदी करने की अनुमति प्राप्त करने में सफल रहे।
इसी समय सन् 1611 में भारत में व्यापार करने के उद्देश्य/purpose of doing business से एक फ्रांसीसी क्म्पनी की स्थापना की गई थी। फ्रांसिसियों ने 1668 में सूरत, 1669 में मछली पट्टणम् थथा 1674 में पाण्डिचेरी में अपनी कोठियाँ खोल लीं। आरंभ में फ्रांसिसयों को भी डचों से उलझना पड़ा पर बाद में उन्हें सफलता मिली और कई जगहों पर वे प्रतिष्ठित हो गए। पर बाद में उन्हें अंग्रेजों ने निकाल ! 1608 में विलयम हॉकिंस भारत आया 400 का मनसब ( मुगलो के अधीन नौकरी ) प्राप्त करने वाला प्रथम ब्रिटिश विलियम हॉकिंस ही था !